चिपको आंदोलन : एक ऐसा आंदोलन जिसमे लोगो ने पेड़ों की रक्षा के लिए खुद के जीवन का बलिदान दे दिया

चिपको आंदोलन कब हुआ , किसने करवाया , कहा हुआ और इससे किस का नुकसान हुआ ये सभी टॉपिक पर आज हम इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे ।

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चिपको आंदोलन कब और कहां हुआ था?

चिपको आंदोलन उत्तराखंड की पहाड़ियों में गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के एक छोटे से गॉव रेनी में 1973 में शुरू हुआ । यह एक वन संरक्षण आंदोलन था जो वनो की कटाई को रोकने के लिए वह के लोग द्वारा शुरू किया गया । बात है 1973 की जब सरकार की अनुमति से कुछ सरकारी कर्मचारी पेंडो की कटाई के लिए जंगल आ गए । गांव वालों ने जब उन लोगो को देखा तो गांव वालों और उन लोगो के बीच झगड़ा होने लगा ये झगडे की बात जब ऊपर बड़े अधिकारियों को पता चली तो उन्होंने गांव वालों को अगले दिन चमोली नाम की जगह पर बुलाया और कुछ बात करने के लिए प्रार्थना की । तब गांव वाले उन लोगो की बात मन गए और उन लोगो से बात करने के लिए तैयार हो गए लेकिन ये अधिकारीयों की चल थी की जैसे ही गांव वाले चमोली के लिए निकलेंगे वो लोग पदों की कटाई शुरू कर देंगे । जब सुबह गांव के सभी लोग चमोली के लिए निकल गए तो गांव की एक महिला को ये बात पता चली की ये उन लोगो की एक चाल है । उस महिला का नाम था गौरा देवी । गौरा देवी को जैसे ही ये बात पता चली वो गांव की करीब 20-21 महिलाओं और कुछ बच्चों लेकर जंगल की ओर चल पड़ी । वहा जाकर देखा की कर्मचारी लोग तब खाना बना रहे थे । तो उसने उन लोगो से कहा की ये जंगल हमारा मायका है और इस जंगल को हम नहीं काटने देंगे । ये सुन कर अधिकारीयों ने उन लोगो से काफी बहस की बाद में बल प्रयोग उन महिलाओं को हटाने का प्रयाश किया तो गौरा देवी अपनी बेटी को लेकर एक पेड़ से चिपक गई और कहने लगी की अगर इन पेंडो को काटना है तो पहले मुझे काटना पड़ेगा । ये देख बाकि महिलाये भी पेंडो से चिपक गई और और सभी महिलाये कहने लगी की पेंडो को काटने से पहले हम लोगो को काटना पड़ेगा । ये देख कर्मचारी वापस चले गए । ये घटना पुरे भारत में आग की तरह फ़ैल गई हर जगह गौरा देवी और गांव की महिलाओं की प्रंशसा होने लगी । जब ये पूरी घटना सरकार पर पहुंची तो सरकार ने उस जंगल से अगले 15 साल तक लकड़ी न काटने का आदेश दिया

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